Tuesday 8 December 2015

डाकू बैठे गली मुहल्ले

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ ।

गाछ, लता, हरियाये , पात
महुआ, सखुआ, नीम, पलाश
ये है मेरी धड़कनों में
तुम्हें सुनाना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

ताल-तलैया घाट गहरे
किन्तु खुशियों पर पहरे
डाकू बैठे गली मुहल्ले
तुम्हें बताना चाहता हूँ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ

लूट रहे हैं मुझको सब
मौका मिलता जिनको जब
झारखंड हूँ मैं अपने
घाव दिखाना चाहता हूँ ।

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ।

दर्द जो मैं भोगता हूँ
भाव वही मैं रोपता हूँ
हृदय में जो भरा हुआ
तुम्हें दिखाना चाहता हूँ

जंगलों और पर्वतों के
गीत गाना चाहता हूँ
.........नीरज कुमार नीर /
#jharkhand #jungle #geet #neeraj
#neeraj_kumar_neer 

3 comments:

  1. जंगल पर्वतों के गीत गाना चाहता हूँ, सुन्दर रचना आदरणीय नीरज जी!
    भारतीय साहित्य एवं संस्कृति

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  2. नीर जी क्या बात है !! अद्भुत शब्द संयोजन ! एक एक पैराग्राफ बहुत कुछ कहता है !! अविसमरणीय अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

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