Monday 2 March 2015

नदी नीचे जाकर लवण बन गयी

#कथाक्रम के जुलाई-सितंबर 2015 अंक मे प्रकाशित 

एक सत्यान्वेषी ,
मुक्ति का अभिलाषी
था उर्ध्वारोही।
कर रहा था आरोहण
पर्वत की दुर्लंघ्य ऊचाईयां का।
पर्वत से उतरती नदी ने कहा :
मैदानों में तो जीवन कितना सरल , सुगम है,
यहाँ जीवन है कितना दुष्कर।
अविचलित रहकर इसपर
दिया उसने उत्तर
मैंने भीतर जाकर देखा है,
वाह्य सौंदर्य तो धोखा है।
 मैदानों में जीवन सरल है,
पर राह लक्ष्य की वक्र  है।
जीवन रथ मे लगे
 कर्म फल के दुष्चक्र हैं।
मैं राह सीधी लेना चाहता हूँ।
इसलिए नीचे से ऊपर जाना चाहता हूँ ।
दोनों महार्णव मिलन को आतुर
चल दिये,
अपने अपने यौक्तिक मार्ग पर ।
ऊर्ध्वारोही पा गया अपनी इच्छित ऊँचाई
नदी नीचे जाकर लवण बन गयी।
........
#नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer

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2 comments:

  1. नदी नीचे जाके लवण'' बन गई। बहुत ही सुंदर रचना है। पूरी रचना सुंदर शबदों से रची गई है।

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना कविवर नीर साब !

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