Thursday 25 December 2014

माँ का प्यार

सितारों से सजे 
बड़े बड़े होटलों में,
नरम नरम गद्दियों वाली कुर्सियां,
करीने से सजी मेजें,
मद्धिम प्रकाश,
अदब से खड़े वेटर,
खूबसूरत मेन्यू पर दर्ज,
तरह तरह के नामों वाले व्यंजन,
खाते हुए फिर भी
स्वाद में 
कुछ कमी सी रहती है.
याद आता है
 माँ  के हाथों  का खाना
खाने के साथ 
माँ परोसती थी 
प्यार..
....नीरज कुमार ‘नीर’
neeraj kumar neer 

9 comments:

  1. आभार आपका मान्यवर....

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति नीरज जी

    ReplyDelete
  4. सही है, माँ माँ ही होती है. माँ की बराबरी कोई नही कर सकता.

    ReplyDelete
  5. माँ। यहाँ तो कवियों की कलम रुक सी जाती है पर अपने लिखा..बेहतरीन। जैसे दिल की बात अपने छीन ली हो

    ReplyDelete
  6. उस हाथ का क्या कहना. एक बार माथे पर जो पड़ जाए. और खाने की बात तो निराली है ही. सुन्दर रचना.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...