Friday 21 November 2014

जालिम कैसे निबाहता है रस्म ए इश्क़


जालिम कैसे निबाहता है रस्म ए इश्क़
पहले याद करता है फिर भुला देता है

आता है कभी करीब फिर दूर जाता है
देता है गम ए दिल और  रूला देता है

रहती है जब उम्मीद तो आता ही नहीं 
आता है रातों को और जगा देता है

रोशनी फैले भी तो कैसे हयात में 
जलाता है इक दीया फिर बुझा देता है

उनके अंदाजे बरहमी के क्या कहिए   
जाने को कहता है फिर सदा देता है॥ 
#नीरज कुमार नीर ...... 
#neeraj kumar neer 
#गजल #gazal #love #shayari #इश्क़ 

5 comments:

  1. नीरज जी बेहद ख़ूब बयाँ है इश्क का .....सुंदर शायरी

    ReplyDelete
  2. सुन्दर ग़ज़ल ! आदरणीय नीरज जी!
    धरती की गोद

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब .. आखरी दो लाइनें तो कमाल कर गयीं ...

    ReplyDelete
  4. एकदम खूबसूरत पंक्तियाँ नीरज जी

    ReplyDelete
  5. ये इश्क ही है. सुंदर रचना !

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...