Friday 17 October 2014

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ


पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ । 

फुनगियों पर अँधेरा है 
आसमान में पहरा है। 
जवाब है जिसको देना
वो हाकिम ही बहरा है।  
तमस मिटे नव विहान चाहता हूँ। 

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ। 

अंबर भरा है कीचड़ से , 
और धरा  पर  सूखा है। 
दल्लों के घर दूध मलाई, 
मेहनत कश पर भूखा है।
पेट भरे ससम्मान चाहता हूँ। 

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ। 

शिक्षा और रोटी के बदले,
धर्म ही लेकिन लेते छीन .  
स्वयं ही को श्रेष्ठ बताते 
बाकी सबको कहते हीन। 
धर्म का ध्येय  निर्वाण चाहता हूँ। 

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
 नापना गगन वितान चाहता हूँ। 

घूमते धर्म की पट्टी बांध   
संवेदना से कितने दूर 
बात अमन की करते लेकिन   
कृत्य करते वीभत्स क्रूर 
सबको समझे इंसान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ । 
….
नीरज  कुमार नीर 
#neerajkumarneer
(आपको कैसी लगी बताइएगा जरूर )
                               

7 comments:

  1. वैसे तो हम जानते हैँ कि केवल चाहने से कुछ नहीं होता। परंतु चाहना अपने आप में एक कोशिश है, और सामूहिक चाहने में एक बड़ी शक्ति होती है इसलिए आपके ही शब्दों में मैं अपनी भी चाह जोड़ता हूँ। आमीन्

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  2. सुन्दर विचार कणिका ,भाव और अर्थ अन्विति बेहतर शब्द विधान।

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  3. Bahut hi arthpurn ...saarthak rachna ...umdaa prastuti !!

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  4. खूबसूरत चाहत है... कहते है... पंखो से उड़ा नहीं जाता दिल में होंसले हो तो मुमकिन है...

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  5. उड़ान तो होंसले से होती है ... पंख स्वत: ही उग आते हैं ...
    अर्थ पूर्ण रचना ...

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  6. सुन्दर आकांक्षा है.व्यथा को उचित ही प्रेषित किया है आपने.

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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