Saturday 23 August 2014

न जाने कब चाँद निकलेगा


जब सूरज चला जाता है 
अस्ताचल की ओट में 
और चाँद नहीं निकलता है.
दिखती है उफक पर 
पश्चिम दिशा की ओर 
लाल लकीरें.
पूरब में काली आँखों वाला राक्षस 
खोलता है मुंह 
लेता है जोर की साँसे 
चलती है तेज हवाएं. 
लाल लकीरें डूब जाती हैं,
फिर सब हो जाता है प्रशांत.
मैं पाता हूँ स्वयं को 
एक अंध विवर में 
हो जाता हूँ विलीन
तम से एकाकार .
खो जाता है मेरा वजूद.
न जाने कब चाँद निकलेगा.

 (C) ..  नीरज कुमार नीर  .
Neeraj Kumar Neer 
चित्र गूगल से साभार 

11 comments:

  1. अँधेरे को भगाने ही तो चाँद आता है... बहुत अच्छी रचना, बधाई.

    ReplyDelete
  2. सुंदर कविता

    ReplyDelete
  3. सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  5. वाह ... सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढ़िया


    सादर

    ReplyDelete
  8. चाँद का इंतज़ार जब इतनी शिद्दत से होगा ...तो कहाँ जायेगा वह ....उसे आना ही होगा ....

    ReplyDelete
  9. सुन्दर लिखा है आपने.

    ReplyDelete
  10. होंसला रखना जरूरी है ... चाँद निकल ही आता है कुछ पल में ...

    ReplyDelete
  11. निराशा के अँधेरे में डूबते हुए भी चाँद रुपी आशा ..बहुत पॉजिटिव रचना है

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...