Friday 27 June 2014

कांच की दीवार

तुम्हारे और मेरे बीच है
कांच की एक मोटी दीवार.
जो कभी कभी अदृश्य प्रतीत होती है
और पैदा करती है विभ्रम
तुम्हारे मेरे पास होने का.

मैं कह जाता हूँ अपनी बात
तुम्हें सुनाने की उम्मीद में.
तुम्हारे शब्दों का खुद से ही
कुछ अर्थ लगा लेता हूँ.

क्या तुम समझ पाती होगी
मैं जो कहता हूँ ?
क्या मैं सही अर्थ लगाता हूँ
जो तुम कहती हो?

कांच की इस दीवार पर
डाल दिए हैं कुछ रंगीन छीटें.
ताकि विभ्रम की स्थिति में
मुझे सत्य बता सकें .

कांच के उस पार से
तुम्हे देखना अच्छा लगता है.
अच्छा लगता है तुम्हारी
अनसुनी बातों का
खुद के हिसाब से अर्थ लगाना ..

#नीरज कुमार नीर
#neeraj
#love #pyar #pyar #प्रेम #हिन्दी #hindikavita 

10 comments:

  1. deevar to deewar hi hai , kanch hi kyun na ho ....bahut sundar

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  2. इस बहाने सब मन का होता सा प्रतीत होता है ....सुन्दर भाव

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  3. भावपूर्ण रचना, बधाई.

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  5. वाह ! बहुत ही सुंदर, सहज अभिव्यक्ति !

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  6. बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति !! मंगलकामनाएं आपको

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  7. या मैं सही अर्थ लगाता हूँ
    जो तुम कहती हो?
    कांच की इस दीवार पर
    डाल दिए हैं कुछ रंगीन छीटें.
    ताकि विभ्रम की स्थिति में
    मुझे सत्य बता सकें .
    क्या बात है ! बहुत बढ़िया

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