Monday 3 February 2014

मैं भारत हूँ :


विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

संस्कार की पूंजी, संस्कृति अक्षय धन है 
शिव का वरदान है, कृष्ण का उपासक हूँ.
सांसो पर अधिकार है, मन का शासक हूँ.
दुःख हो या उल्लास, बराबर से जीता हूँ .

विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

चाह नहीं विजय की, भय नहीं कुछ खोने का
शिराओं में प्रस्फुटित काल निनाद होता है,
सबल भुजाओं में, दीर्घ इतिहास सोता है.
उन्मुग्ध रहा विश्व, ज्ञान का अधिष्ठाता हूँ.

विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

सभ्यता सिखाता रहा सदा आदि काल से,
डरा नहीं रक्तरंजित, देख दन्त कराल के.
विश्व विजय की, नहीं की कभी भी अभिलाषा,
नत हो कोई की नहीं, कभी ऐसी आशा .
निर्विकल्प रहा सदा, रागों से रीता हूँ,

विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

पराजित हुआ रहा, पराधीन भी सदियों 
ठगा गया कई बार, छल के हाथों हारा.
उठा हर बार, स्वयं ही स्वयं को संवारा .
मैं अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता हूँ.

विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

.... नीरज कुमार नीर ...
#neeraj_kumar_neer 

16 comments:

  1. haan sach me main bhart hi hun .......vicharpurn rachna

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  2. उत्कृष्ट रचना ...बधाई एवं शुभकामनायें .

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  3. बहुत कुछ है ये देश .. बहुत कुछ था ये देश ... पर आज विषाद ही छाया हुआ है ... जिससे बाहर आना है ...

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  4. आपकी बेहतरीन रचना। मैं भारत हूँ

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  5. ऐसा ही है हमारा प्यारा भारत महान ,आशा नहीं छोड़ेंगे ......बहुत बढ़िया ....

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  6. सुंदर मनभावन रचना
    बसंत पंचमी की अनंत हार्दिक शुभकानाएं ---
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई -----

    आग्रह है--
    वाह !! बसंत--------

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  7. विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
    विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.

    विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
    विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.
    मैं विषाद के क्षण को भी जी भरकर जीता हूँ,
    विष अगर मिल जाये हंसकर मै पीता हूँ.भारत हूँ :

    सशक्त रूपक रतत्व लिए है रचना।

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  8. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बसन्त पंचमी, विश्व कैंसर दिवस, फेसबुक के 10 साल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  9. सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा.... बहुत खूबसूरत कविता ....!!

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  10. काल की चाल पर विश्वास है,
    बेटों पर मुझे अडिग आस है।

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  11. आत्मविश्वास भरती हुई प्रेरक पंक्तियाँ. सुन्दर सृजन का नमूना है आपकी यह कविता. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

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  12. भारत के जीवन दर्शन एवं गौरव को स्थापित करती सशक्त प्रस्तुति !

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  13. बहुत ही बढ़िया

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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