Wednesday 15 January 2014

आसमान से ऊपर का बाग़

वागर्थ के अप्रैल 2015 अंक में प्रकाशित ....

आसमान से ऊपर 
है एक सुन्दर बाग़ 
जहाँ रहती हैं परियां 
नाजुक मुलायम 
ऊन के गोले सी.
खिलते हैं सुवासित
सुन्दर  फूल.
वहां बहती है एक नदी,
जिसमे परियां करती है कलोल, 
उडाती है एक दुसरे पर छीटे, 
जिससे होती है धरती पर 
हल्की बारिश लेकिन 
धरती रह जाती है प्यासी. 
जब कभी नदी तोड़ती है तटबंध
आ जाती धरती पर बाढ़. 
और सब कुछ हो जाता तबाह. 
उस बाग़ में लग जाएगी आग. 
एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा 
जुड़ गया है वापस.
आदिवासी गाँव का एक लड़का 
छोड़ेगा अग्निवाण. 
जल जाएगा आसमान से ऊपर का बाग़. 
अब आदिवासियों के गाँव में 
नाचेगी परियां,
खिलेंगे महकते फूल, 
बहेगी एक सुन्दर नदी.

नीरज कुमार नीर 
#neeraj_kumar_neer 

14 comments:

  1. धन्यवाद आपका

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  2. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है.

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  3. मर्मस्पर्शी रचना.....

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  4. संसाधन जुटाता प्रतियोगी विश्व।

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  5. सुन्दर कविता |नीरज जी आभार |

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  6. सुन्दर, रोचक व पठनीय सूत्र

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  7. काफी उम्दा प्रस्तुति.....
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
    - मिश्रा राहुल

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    Replies
    1. शुक्रिया राहुल भाई ..

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  8. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति नीरज जी...

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  9. बहुत खूब ... लाजवाब भावपूर्ण प्रस्तुति ...

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  10. बहुत सुंदर। आजायेंगी आदिवासिों की धरती पर वे परियाँ, खिलेंगेमहकते फूल और बहेगी एक सुंदर नदी।

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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