(प्रस्तुत कविता आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नक्सली समस्या एवं उसके दुष्चक्र के सम्बन्ध में है , कैसे एक भोला भाला आदिवासी नक्सली बनने पर मजबूर होता है और बाद में उसकी लालसा कैसे उसको एक गहरे गर्त में धकेल देती है और वह उसमे गहरे फंसता चला जाता है, व्यवस्था कैसे इसमें अपना रोल निभाती है. धामिन एक विष हीन सर्प होता है, यहाँ इसका सन्दर्भ सीधे सादे आदिवासियों से है , करैत एक विषैला सांप होता है , यहाँ इसका सन्दर्भ नक्सलियों से हैं और राजा तो राजा ही है .. :) )
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जंगल से एक धामिन सांप
भाग कर आ गया है शहर.
उसके बिल में
करैतों ने डाला था डेरा.
खा गया था उसके अंडे.
अब राजा के लोग
उसके बिल में डाल रहे हैं
गरम पानी.
पूछते है करैतों का पता.
उसे बताते हैं करैतों में से एक.
शहर आकर उसने देखा है चकाचौंध.
सीख लिया छल
उसके मन में जन्म लेती है
लालसा .
वह भी पाना चाहता है
संसाधनों पर अपना हिस्सा
करैतों की तरह
जो जंगल में रहकर
शहर में रखते है आलिशान मकान
बड़ी गाड़ियाँ
अपने बच्चों के लिए
इंग्लिश स्कूल और
अच्छे अस्पताल .
वह जंगल वापस जाता है
बन जाता है करैत ,
वसूलता है लेवी
घुसता है किसी धामिन के बिल में ..
वसूलता है लेवी
घुसता है किसी धामिन के बिल में ..
खाता है उसके अंडे.
उसके सर पर
सरकार ने रखा है इनाम
अपने झोले में अब रखता है
नक्सली साहित्य .
#neeraj_kumar_neer
.. नीरज कुमार नीर
(चित्र गूगल से साभार )