Friday 1 March 2013

धर्म से शिकायत


क्या खाने को चखा
खाने की शिकायत करने से पहले?
क्या परखा उसके गुण दोषों को या
यूँ  हीं चाँद टेढ़ा कर लिया ?
ये आदत है तुम्हारी,
अबाध स्वतंत्रता से उपजी
एक बुरी आदत .
लंबी गुलामी का असर हो गया है
तुम्हारे मस्तिष्क पर.
तुम किनारे पर बैठ
समुन्दर को छिछला बताते हो .
किनारे पर जमा गन्दगी को देख
सागर की प्रकृति बताते हो.
ये गन्दगी सागर का दोष नहीं
यह दोष है तुम्हारा.
जो समझते हैं स्वयं को ज्ञानी
अपने सीमित ज्ञान के साथ.
क्या पन्ने पलटे उपनिषद , गीता के कभी
कभी कोशिश की तत्व जानने की.
चार पन्ने की कोई किताब पढ़ी और
सबको झूठा कह दिया.
तुम क्यों नहीं तलाशते कोई और सागर,
लेकिन नहीं
वहाँ आज़ादी नहीं
बुरा कहने की .
ये तुम्हारे संस्कारों का ही  दोष है .
तुम नंगा  होना चाहते हो,
तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
खासकर गैरों के सामने .

... नीरज कुमार ‘नीर’
#neeraj_kumar_neer

क्या आप मेरे विचारों से सहमति रखते हैं.

18 comments:

  1. ये तुम्हारे संस्कारों का ही दोष है .
    तुम नंगा होना चाहते हो,
    तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
    तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
    खासकर गैरों के सामने,,,,,

    बहुत सुंदर रचना ,,,,
    आप भी फालोवर बने,मुझे खुशी होगी,,,

    RECENT POST: पिता. .

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    1. बहुत शुक्रिया धीरेन्द्र जी.

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  2. उत्तम रचना
    तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
    तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
    खासकर गैरों के सामने .
    अच्छी पंक्तिया
    सादर
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
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  3. सुन्दर भाव. बहुत अच्छी रचना लगी नीरज जी.

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    1. बहुत आभार श्रीमान.

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  4. तुम नंगा होना चाहते हो,
    तुम्हे सत्य और झूठ से मतलब नहीं है.
    तुम्हे नंगा होना अच्छा लगता है .
    खासकर गैरों के सामने .

    सुंदर भावपूर्ण, अर्थपूर्ण, सीधा और सही सन्देश देती सुंदर प्रस्तुति.

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    1. रचना जी बहुत बहुत आभार.

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  5. अपूर्ण ज्ञान से उपजा अज्ञान ऐसे ही होता है. फिर भी यह अच्छा है कि समझ कर मानने की आज़ादी तो है. जहां सोच पर पाबंदी वहाँ धर्म भी अपना अर्थ खो देता है...
    चार पन्ने की कोई किताब पढ़ी और
    सबको झूठा कह दिया.

    बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, डॉ जेन्नी शबनम जी, आपके समर्थन का बड़ा आभारी हूँ. मेरे ब्लॉग पर आपका आगमन मेरे मनोबल को बढ़ाने वाला है..
      सादर

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  6. सच कहा है ... पूर्ण ज्ञान नहीं लेते ओर कमियां निकालना शुरू हो जाते हैं ...
    आज ये जैसे आम बात हो गई है ...

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    1. श्रीमान दिगंबर नासवा जी, आपका बहुत बहुत आभार.
      सादर,

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  7. bahut sundar rachna .isme aakosh bhi hai aur chetavani bhi.

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  8. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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  9. बहुत सटीक अभिव्यक्ति..

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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