Thursday 20 September 2012

खोलो खिड़कियाँ सूरज को आने दो

खोलो खिड़कियाँ सूरज को आने दो,
अँधेरा अब भी बहुत है ज़माने में.

परदे हटाओ कि ताज़ी हवा आए,
हर्ज क्या एक तरीका आजमाने में.

मुस्कुराओ सब  तुम्हे देख मुस्काएं 
कोई दाम तो नहीं मुस्कुराने में.

रिश्ता जोड़ना तो है आसान बहुत ,
मुश्किल बहुत है रिश्ता निभाने में.

अपने नुक्स को पहले देख तो नीरज,
लगे हो क्यों सब की कमियां गिनाने में.

……………. नीरज नीर 

2 comments:

  1. आसान और स्पष्ट रूप से लिखी गयी कविता , हर किसी को पसंद आएगी |

    सादर

    ReplyDelete
  2. बहुत शुक्रिया.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...