Sunday 8 April 2012

हर्ष और विषाद


सूखे खेतों की दरारें,
और किसानो के फटें होठ,
बता रहें है की दोनों को,
बहुत दिनों से नमी नसीब नहीं .

छप्पर वाले घर से निकलता धुआं
आज कई दिनों बाद
उस घर में जला है चूल्हा

उस घर के मालिक की
भुखमरी से मौत हुई है आज
आज ही, सरकार ने दिया है अनाज.
.....................   नीरज कुमार 'नीर'

2 comments:

  1. ओह!बहुत ही मार्मिक ...... प्रेमचंद जी की कहानियाँ याद दिला दी आपने

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  2. भावपूर्ण रचना

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मूल्यवान है. आपकी टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार.

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