Saturday 14 January 2012

प्रभु तुम हो

वनों कि अमराईयों में,
सागर कि गहराइयों में,
पर्वत के उत्तुंग शिखर पर,
व्योम के विस्तीर्ण पटल पर,
प्रभु! तुम हो, तुम हो, तुम ही तुम हो .

निर्झर के नीर में,
 हर्ष में,  पीर में,
जलधी के जल में,
 हर एक पल में,
प्रभु! तुम हो , तुम हो, तुम ही तुम हो.

मीरा के गीत में ,
राधा के प्रीत में ,
जीवन की  फाँस  में ,
हर एक साँस में,
प्रभु! तुम हो , तुम हो, तुम ही तुम हो.

जीवन निष्पत्ति  में,
दुर्गम  विपत्ति में,
सफलता कि आस में,
मेरे हर प्रयास में,
प्रभु! तुम हो, तुम हो, तुम ही तुम हो.

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